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जुलाई 09 – हिजकिय्याह की सच्चाई!

“हे यहोवा, मैं विनती करता हूं , स्मरण कर कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूं, और जो तुझे अच्छा लगता है वही मैं करता आया हूं ” (2 राजा 20:3)।

आज हम राजा हिजकिय्याह की सच्चाई पर मनन करने जा रहे हैं। वह यहूदा पर शासन करने वाला तेरहवां राजा था। पच्चीस वर्ष की अवस्था में वह राजा बना। वह यहूदा के तीन सच्चे और ईमानदार राजाओं में से एक था। हिजकिय्याह नाम का अर्थ है,”केवल यहोवा ही मेरा बल है”।

राजा हिजकिय्याह की सच्चाई क्या थी? उसने मूर्ति-पूजा प्रथा को पूरी तरह से समाप्त कर दिया और उन सभी ऊंचे स्थानों को तोड़ दिया जहां मूर्तियों को बलि दी जाती थी। जब उन दिनों के इस्राएलियों ने मूसा के बनाए हुए पीतल के साँप को दण्डवत किया, तब उसने उसे भी तोड़ दिया। उसने आराधना के उचित तरीके को सुचारू किया और लोगों के लिये आत्मा और सच्चाई से आराधना करने का मार्ग प्रशस्त किया।

इतना ही नहीं, उसने इस्राएलियों को जो तितर-बितर हो गए थे, फिर से मिला दिया और चौदह दिनों तक विशेष रूप से फसह मनाया। द्वितीय इतिहास की पुस्तक के 30वें अध्याय में, हम पढ़ते हैं कि वह परमेश्वर के प्रति प्रेम में कितना विश्वास योग्य  था।

पवित्रशास्त्र कहता है, “… हिजकिय्याह ने ऐसा ही प्रबंध किया, और जो कुछ उसके परमेश्वर यहोवा की दृष्टि में भला और ठीक और सच्चाई का था, उसे वह करता रहा” (2 इतिहास 31:20)। फिर भी उसे अपने जीवन में संघर्ष का सामना करना पड़ा। एक भयानक बीमारी ने उस पर हमला किया और वह मरने वाला था। यशायाह ने उससे भेंट की, और उससे कहा, “अपने घराने के विषय जो आज्ञा देनी हो वह दे; क्योंकि तू नहीं बचेगा मर जाएगा” (2 राजा 20:1)।

यह सुनकर राजा हिजकिय्याह का हृदय टूट गया और प्रार्थना की, “हे यहोवा मैं विनती करता हूं स्मरण कर कि मैं सच्चाई और खरे मन से अपने को तेरे सम्मुख जानकर चलता आया हूं और जो तेरी दृष्टि में उचित था वही करता आया हूं।”और हिजकिय्याह  बिलख बिलखकर  रोने लगा(यशायाह 38:3)।

राजा हिजकिय्याह की सच्चाई ने परमेश्वर के हृदय को छू लिया। परमेश्वर को याद आया कि राजा हिजकिय्याह जीवन भर कितना सच्चा और सिद्ध रहा था। उस ने हिजकिय्याह से कहा, “मैं ने तेरी प्रार्थना सुनी, और तेरे आंसू देखे हैं; सुन मैं तेरी आयु पन्द्रह वर्ष और बढ़ा दूंगा” (यशायाह 38:5) और उसकी आयु बढ़ा दी।

परमेश्वर के प्यारे बच्चों, जब आप परमेश्वर के सामने सच्चाई से और ईमानदारी से आते हैं, तो वह आपकी प्रार्थना सुनते हैं। वह आपके आंसू पोंछते हैं। वह आपके जीवनकाल को बढ़ाते हैं। पवित्रशास्त्र कहता है, “उसने इस्त्राएल के घराने पर की अपनी करुणा और सच्चाई की सुधि ली ,और पृथ्वी के सब दूर दूर देशों ने हमारे परमेश्वर का किया हुआ उद्धार देखा है” (भजन संहिता 98:3)।

ध्यान करने के लिए: “परंतु मैं अपनी करुणा उस पर से न हटाऊंगा और न सच्चाई त्याग कर झूठा ठहरुंगा” (भजन संहिता 89:33)।

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