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जून 29 – आदि में आकाश!
“आदि में परमेश्वर ने आकाश और पृथ्वी की सृष्टि की”(उत्पत्ति 1:1)
ईश्वरो के ईश्वर, प्रभुओं के प्रभु, राजाओं के राजा हमारे परमेश्वर को पवित्र शास्त्र “आकाश और पृथ्वी के सृष्टिकर्ता” के रूप में उनका परिचय करवाता है। आदि में आकाश के सृष्टिकर्ता ने बादलों के अंतर को आकाश कहा। (उत्पत्ति 1:8) आकाश के अंतर में बड़ी ज्योतियां स्थापित की । वैसे ही सूर्य चंद्रमा और नक्षत्र सृजे गए।
उसी परमेश्वर का जब प्रभु यीशु परिचय करवाते हैं तब,” स्वर्ग में रहने वाले पिता”और “परमपिता” कहते हैं, पुराने नियम में एक बार भी ऐसा नहीं कहा गया है। इस्राएल के लोगों ने उन्हें प्रेमी पिता के रूप में नहीं जाना। अधिकांश समय में उन्हें न्याय करने वाले परमेश्वर के रूप में ही देखा। सीने के पहाड़ में परमेश्वर का उतरना दिल को दहला देने वाली स्थिति थी। मेघों के गर्जन सुनाई दिए, बिजलियां कौंध उठीं पूरा पहाड़ धुंए से भर गया।
किंतु नए नियम में आप सभी, उन पर प्रेम प्रकट करने और उन पर विश्वास करने के द्वारा उनकी संतान बन जाते हैं। हे पिता, कहकर प्रेम से ,स्नेह से ,अधिकार के साथ हम उन्हें पुकारते हैं। हे अब्बा पिता कहकर पुकारने वाली लेपालकपन की आत्मा भी हमें परमेश्वर की कृपा से मिली है।(रोमियो 8:15; गलातियों4:6) वे ही पृथ्वी पर सारी जीवित प्राणियों की सृष्टि करने वाले पिता के रूप मेें हैं। सारे ब्रह्मांड के सारे परिवारों के वही पिता हैं।
बच्चा बड़ा होकर अपने पिता के समान बनता है। उसी तरह आपको भी स्वर्गीय पिता के गुणों और स्वभाव में बढ़ना चाहिए। यीशु ने कहा “इसलिए चाहिए कि तुम सिद्ध बनो ,जैसा तुम्हारा स्वर्गीय पिता सिद्ध है।”(मत्ती 5:48)
संसार में सारी सृष्टि में सबसे ज्यादा महत्व परमपिता ने आपको दिया है। आपको अपनी समानता मैं बनाकर उनका स्वरूप आपको दिया है। पवित्र आत्मा के द्वारा आपसे सहभागिता करते हैं। आप सारी जीवित प्राणियों और स्वर्गदूतों से भी विशेष हैं।
“आकाश के पक्षियों को देखो! वे न बोते हैं, न काटते हैं, न खातों में बटोरते हैं, फिर भी तुम्हारा स्वर्गीय पिता उनको खिलाता है।क्या तुम उन से अधिक मूल्य नहीं रखते? इसलिए तुम चिंता करके यह न कहना कि हम क्या खाएंगे, या क्या पिएंगे, या क्या पहनेंगे। क्योंकि अन्यजातीय इन सब वस्तुओं की खोज में रहते हैं ,पर तुम्हारा स्वर्गीय पिता जानता है कि तुम्हें इन सब वस्तुओं की आवश्यकता है।”(मत्ती 6:26 ,31 ,32)
ध्यान करने के लिए, “स्वर्गीय पिता अपने मांगने वालों को पवित्र आत्मा क्यों न देगा।”(लूका 11:13)।