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जून 05 – प्रेम सबसे बड़ा है!
“पर अब विश्वास, आशा, प्रेम ये तीनों स्थायी हैं, पर इन में सबसे बड़ा प्रेम है।”(1कुरन्थियों13:13)
दुनिया के सभी शब्दों में यदि सबसे मधुर कोई शब्द है तो वह “प्रेम”है। उसी समय ,आप वास्तविक प्रेम को समझ सकें ऐसा होना चाहिए। दिव्य प्रेम भी है ,और झूठा प्रेम भी है। माता-पिता का प्रेम भी है, दोस्तों का प्रेम भी है, भाई बहनों का प्रेम भी है, पति पत्नी का प्रेम भी है। वास्तविक प्रेम, श्रेष्ठतम होता है। प्रेम ही सबसे बड़ा है, ऐसा प्रेरित पौलुस कहता है।
परमेश्वर ने प्राकृतिक रूप से ही प्रत्येक मनुष्य के अंदर में कुछ हद तक प्रेम रखा हुआ है। कुछ लोगों को प्रेम प्रकट करने की क्षमता होती है कुछ लोगों को प्रेम को ग्रहण करने की क्षमता होती है। मां को अपने बच्चे के ऊपर न जाने कैसे एक मधुर प्रेम होता है। उस प्रेम के कारण दया से भरकर अपने बच्चे को दूध पिलाती है। कई माताओं का प्रेम देखकर बड़ा आश्चर्य होता है। बच्चा दुष्टता के मार्ग पर भी यदि चलता है या वह खूनी भी हो तब भी मां उस से प्रेम करती रहती है।
गाय को देखें! सुबह अपने बछड़े को दूध पिलाने के लिए वह ढूंढती है। बछड़ा न मिलने पर वह जब चिल्लाती है तो सारा घर हिल जाता है। बछड़ा भी पूंछ को हिलाते -हिलाते, सर को हल्के से टकराते हुए जब दूध पीने लगता है, मां और बछड़े दोनों को खुशी होती है। मां उस प्रेम को प्रकट करते हुए बछड़े को चाटती है। उस बछड़े के ऊपर इतनी गंदगी है क्या उसे चाटना उचित है ?, उसी प्रेम के कारण वह यह नहीं सोचती। प्रेम में त्याग होता है।
परमेश्वर के प्रिय बच्चों, जिन्होंने मां के हृदय में प्रेम को दिया, गाय के हृदय में प्रेम को दिया वह परमेश्वरअपने हृदय में कितना प्रेम रखते होंगे। इसलिए पवित्र शास्त्र कहता है “परमेश्वर प्रेम है।”वह दिव्य प्रेम ही आपको ढूंढते हुए आया। आप को थामकर उठाया। आपको धोकर साफ किया। अपनी संतानों में बदल दिया। उस दिव्य प्रेम के कारण स्वर्ग के राजा यीशु एक दास की तरह इस पृथ्वी पर उतर कर आ गये। उसी प्रेम के कारण इतने भारी क्रूस को उठाकर पैदल चलते हुए ,खुद को बलिदान करके सौंप दिया।
आप पवित्र शास्त्र को यदि पढ़ते हैं तब पहले कुरिन्थियों के 12 वेंअध्याय में पवित्र आत्मा के बरदानों के बारे में वहां पौलुस लिखते हैं, 14 वें अध्याय में उन वरदानों के उपयोग के संबंध में लिखते हैं, दोनों अध्यायों के बीच के 13 वें अध्याय में प्रेम को पूर्ण रूप से परिभाषित करते हुए दिखते हैं।
परमेश्वर के प्यारे बच्चों वरदान और सामर्थ्य आपके लिए जरूरी हैं किंतु उन्हें प्रेम के साथ उपयोग करें। वही आपके लिए आशीष का कारण होगा।
ध्यान करने के लिए,”प्रेम धीरजवन्त है, और कृपालु है; प्रेम डाह नहीं करता; प्रेम अपनी बड़ाई नहीं करता, और फूलता नहीं”(1कुरिन्थियों13:4).