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जून 24 – समर्पण, एक अच्छा निर्णय!

“परंतु दानिय्येल ने अपने मन में ठान लिया, कि वह राजा का भोजन खाकर और उसके पीने का दाखमधु पीकर अपवित्र न होए”। (दानिय्येल1:8)

मसीही जीवन में ठान लेना और अर्पण करना यह बहुत ही आवश्यक पहलू हैं। यदि दृढ़ता से हमने नहीं ठाना है तो पवित्रता के जीवन को जीना मुश्किल है। अर्पण का जीवन यदि नहीं है तो संघर्ष के समय में हमारा हृदय स्थिर नहीं रहेगा।

आजकल बहुत सारे शपथ और निर्णय देखे जा सकते हैं। कई लोग उपवासकाल में 40 दिन मांस नहीं खाएंगे या सिर में फूल नहीं लगाएंगे ,सुबह पवित्र शास्त्र पढ़कर प्रार्थना करेंगे, ऐसा निर्धारित करते हैं। अच्छी बात है, ऐसा यदि आपने शपथ खाई  है तो उसे पूरा करें। (सभोपदेशक5:5)।

जो किसी दिन को विशेष समझता है तो वह प्रभु के लिए विशेष समझता है, लेकिन आपके अर्पण और ये निर्धारण कुछ दिनों के बाद खत्म नहीं हो जाना चाहिए। पवित्र जीवन जीने के लिये, गहराई से आप का समर्पण जीवन भर सफल होना चाहिए।

पुराने नियम में,परमेश्वर ने एक समर्पित जीवन चुनने के लिए अपनी संतानों को तैयार किया। उसमें ही एक समर्पण वाला जीवन नाज़ीर में न्यारा रहने की मन्नत मांगना होता था। गिनती की पुस्तक के छठवें अध्याय के 01 से 12 वचन तक न्यारे रहने की शर्तों के बारे में बताया गया है । 1) नाजी़र केसिर के बाल नहीं काटे जाना चाहिए 2)नाजी़र दाख मधु आदि मदिरा का सेवन नहीं करेगा 3) मृत शरीर से अशुद्ध न हों । यह नाजीर रहने की शपथ थोड़े दिन के लिए नहीं जीवन भर के लिए होती थी।

नए नियम में प्रभु यीशु के समर्पण का जीवन हमारे हृदय को गहराई से छूता है। उसे पूरा करने के लिए पिता की इच्छा के लिए अपने आप को पूर्ण रूप से उन्होंने समर्पित किया।उसके लिए ही उतर कर आया हूं ऐसा उन्होंने कहा (यूहन्ना 6:38)। वे 40 दिन उपवास में रहने के दौरान उनको भूख लगी। लेकिन पत्थर को रोटी में बदलकर अपनी भूख को शांत करने के लिए वह आगे नहीं आए।

उनको गिराने का प्रयास करने वाला शैतान अपनी साजिशों में नाकाम रहा। जी हां ,उनका अर्पण का जीवन पवित्र जीवन था। वे पवित्र और निष्कपट और निर्मल और पापियों से अलग थे । (इब्रानियों 7:26)

परमेश्वर एक समर्पित एवं नियंत्रित जीवन ही कि आपसे अपेक्षा करते हैं। पुराने नियम में दानिय्येल ने वैसा समर्पित जीवन जिया ,इस कारण परमेश्वर ने दानिय्येल को ऊंचा उठाया! सारी रहस्य की बातों को दानिय्येल को प्रकाशित किया। परमेश्वर के प्यारे बच्चों आप भी अपने जीवन को समर्पित जीवन के रूप में जीने के लिए परमेश्वर को अर्पण करें।

ध्यान करने के लिए”मेरे भक्तों को मेरे पास इकट्ठा करो जिन्होंने बलिदान चढ़ाकर मुझसे वाचा बांधी है।”(भजन 50 :5)।

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