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नवंबर 18 – धन्यवाद दें!

“हर बात में धन्यवाद करो: क्योंकि तुम्हारे लिये मसीह यीशु में परमेश्वर की यही इच्छा है.” (1 थिस्सलुनीकियों 5:18)

परमेश्वर चाहता है कि आप हमेशा खुश रहे. कुछ लोग परमेश्वर की स्तुति तभी करते हैं जब उनके पास सब कुछ भरपूर होता है. और जब वे दुःख, असफलता या निराश और थके हुए होते हैं, तो वे स्तुति करना छोड़ देते हैं.

भजन संहिताकार दाऊद कहता है, “मैं हर समय यहोवा को धन्य कहूँगा; उसकी स्तुति निरन्तर मेरे मुँह से होती रहेगी. मेरा मन यहोवा पर घमण्ड करेगा; नम्र लोग इसे सुनकर आनन्दित होंगे.” (भजन संहिता 34:1-2)

राजा दाऊद स्तुति करने के आनन्द को जानता था. इसलिए जब यहोवा का सन्दूक दाऊद के नगर में आया, तो वह आनन्द से उछल पड़ा और यहोवा के सामने नाचने लगा (2 शमूएल 6:16).

जब आप बचपन से लेकर अब तक प्रभु द्वारा किए गए सभी अच्छे कामों को याद करते हैं, जब आप उन सभी आशीर्वादों पर ध्यान लगाते हैं जो उसने आपको दिए हैं, जब आप पवित्रशास्त्र में दर्ज सभी चिह्नों और चमत्कारों पर खुशी से ध्यान लगाते हैं, तब आप अनजाने में भी उसकी स्तुति और धन्यवाद करते रहेंगे. आप लगातार उसकी स्तुति गाते रहेंगे. आप एक स्तुति-योद्धा में बदल जाएँगे और पूरी तरह से धन्य हो जाएँगे. जब आप इस तरह से स्तुति करेंगे, तो प्रभु का हृदय भी प्रसन्न होगा.

परमेश्वर ने मनुष्य को उसकी स्तुति करने के लिए बनाया. दाऊद कहता है, “मैं तेरी स्तुति करूँगा, क्योंकि मैं भयानक और अद्भुत रीति से रचा गया हूँ; तेरे काम अद्भुत हैं, और मेरा मन इसे भली भाँति जानता है.” (भजन 139:14)

“हमारे परमेश्वर के नगर में, उसके पवित्र पर्वत पर यहोवा महान और अति स्तुति के योग्य है.” (भजन 48:1). केवल प्रभु ही सभी स्तुति, आराधना और सम्मान के योग्य है.

हम प्रकाशितवाक्य की पुस्तक में एक अद्भुत दृश्य देखते हैं. जब स्वर्ग में परमेश्वर के लोग आनन्दित होते हैं और उसकी स्तुति करते हैं, तो वे एक नया गीत गाते हैं, जिसमें कहा गया है: “और वे यह नया गीत गाने लगे, कि तू इस पुस्तक के लेने, और उसकी मुहरें खोलने के योग्य है; क्योंकि तू ने वध हो कर अपने लोहू से हर एक कुल, और भाषा, और लोग, और जाति में से परमेश्वर के लिये लोगों को मोल लिया है. और उन्हें हमारे परमेश्वर के लिये एक राज्य और याजक बनाया; और वे पृथ्वी पर राज्य करते हैं.” (प्रकाशितवाक्य 5:9-10)

प्रभु की स्तुति करे और उसे धन्यवाद दे यह बात पूरे शास्त्र में एक सलाह और एक आज्ञा के रूप में कई बार दोहराया गया है. भजनकार दाऊद कहते हैं, “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, और उसके किसी उपकार को न भूलना.” (भजन 103:2)

यह परमेश्वर की इच्छा है कि हम हमेशा उसकी स्तुति और उसको धन्यवाद करते रहे.

मनन के लिए: “क्योंकि तेरी करूणा जीवन से भी उत्तम है मैं तेरी प्रशंसा करूंगा. इसी प्रकार मैं जीवन भर तुझे धन्य कहता रहूंगा; और तेरा नाम लेकर अपने हाथ उठाऊंगा॥” (भजन 63:3-4)

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