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जून 08 – प्रेम में एक मन होना!
“सब में श्रेष्ठ बात यह है कि एक दूसरे से अधिक प्रेम रखो, क्योंकि प्रेम अनेक पापों को ढाँप देता है।”(1 पतरस 4:8)
परमेश्वरीय प्रेम हृदयों को जोड़कर एक कर देता है। भय को दूर करता है, अनेक पापों को ढांप देता है। दिव्य प्रेम अलगाव की ताकतों को दूर करने के लिए और आत्मा में एक हो जाने के लिए बहुत आवश्यक है।
मनुष्य के शरीर में जो चमड़ी है ,वह हड्डियों, मांस, नसों सबको ढांपकर जिस प्रकार सुरक्षा करती है, उसी प्रकार जिनमें दिव्य प्रेम होता है वे अपने परिवार की एकता एवं प्रेम की सुरक्षा करते हैं। जिस मनुष्य के हृदय में वह दिव्य प्रेम होता है वह अन्य लोगों की कमियों और गलतियों पर ध्यान नहीं देता। वह दिव्य प्रेम सब बातों को संभालता है और सब बातों को सहता है।
एक बार एक दुर्घटना में फंस कर मरने वाले एक व्यक्ति के शरीर का पोस्टमार्टम किया गया। अंदर रहने वाले फेफड़े, आंते, नसें सभी बाहर से दिखाई दे रही थी। देखने में बड़ा अटपटा लग रहा था। पहली बार उसी दिन सारे हिस्सों को देखने का मौका मिला।
*पोस्टमार्टम खत्म होने पर उन सारे अवयवों को अंदर रखकर उन्होंने शरीर को सी दिया। उस चमड़े ने सभी चीजों को ढांप कर सारी अशुद्धता को दूर कर दिया।
उसी तरह दिव्य प्रेम जिस व्यक्ति के अंदर में होता है वह अन्य लोगों की कमियों को, गलतियों को ,कड़वाहट को, जलन आदि के विषय को गंभीरता से न लेकर सभी को माफ करके, सब कुछ भूल कर एक मन रहने पर ध्यान करेगा।*
आप के क्रियाकलापों में प्रेम दिखाई दे। प्रेम से बोलें। सेवकाई के लिए जब हम ग्रामीण क्षेत्रों में जाते हैं तब उनके पास देने को यदि कुछ नहीं भी है , तो भी वे बहुत अच्छा अतिथि सत्कार करते हैं।
मटके के ठंडे पानी को देकर वे प्रेम से आप का सत्कार करेंगे। यह प्रेम आपके हृदय को आनंदित कर देता है।
चेहरे को प्रेम से भरा रखना यह भी एक कृपा है। प्रेम से भरा चेहरा कई चिंताओं को दूर कर देता है। यीशु के चेहरे पर प्रेम और करुणा होने के कारण बहुत सारे लोग उनके पास दौड़े आए। कर लेने वाले और पापी लोग भी उनके काफी निकट आ जाते थे।
परमेश्वर के प्यारे बच्चों, आपके सारे कार्य दिव्य प्रेम से भरे रहें। जब आप दूसरों से प्रेम करेंगे तो वे कई गुना अधिक प्रेम आपसे करेंगे। यही नहीं, इन बातों के द्वारा आपके अंदर में मसीह दिखाई देंगे।
ध्यान करने के लिए,”वह सब बातें सह लेता है, सब बातों की प्रतीति करता है, सब बातों की आशा रखता है, सब बातों में धीरज धरता है।”(1कुरिन्थियों13:7)