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जुलाई 26 – इसे अपना लक्ष्य बनायें!
“इस कारण हमारे मन की उमंग यह है कि चाहे साथ रहे चाहे अलग रहें, पर हम उसे भाते रहें” (2 कुरिन्थियों 5:9)।
जिस दिन से प्रेरित पौलुस से मसीह ने दमिश्क की गली में बात की , उसी दिन से उसने मसीह को प्रसन्न किया और मसीह के लिए जीने के लिए खुद को समर्पित कर दिया। इस बारे में कुरिन्थियों में परमेश्वर की कलीसिया को लिखते हुए, वह कहता है, “चाहे साथ रहें चाहे अलग रहें,पर हम उसे भाते रहें” (2 कुरिन्थियों 5:9)। एक कारण के रूप में बताते हुए, वह अगले पद में लिखता है, “क्योंकि अवश्य है कि हम सब का हाल मसीह के न्याय आसन के सामने खुल जाए, कि हर एक व्यक्ति अपने अपने भले बुरे कामों का बदला जो उसने देह के द्वारा किए हों पाए” 2 कुरिन्थियों 5:10)।
आपका जीवन मृत्यु के साथ समाप्त नहीं होगा। मृत्यु के बाद, व्यक्ति को मसीह के न्याय आसन के सामने खड़ा होना होता है। पृथ्वी पर रहते हुए, आप जिस जीवन को जी रहे हैं, वह परमेश्वर को प्रसन्न करने वाला होना चाहिए और विश्वासयोग्य और सिद्ध होना चाहिए। तभी आप मसीह के न्याय आसन के सामने खड़े होकर जीवन का मुकुट और अनन्त निवास को प्राप्त कर सकते हैं। इसलिए हमेशा वही करें जो उन्हें अच्छा लगता है।
एक बार एक साम्यवादी देश में एक पास्टर जेल में था। वह वहां के कष्टों को सहन नहीं कर पा रहा था। उसका हृदय विचलित होने लगा। एक दिन कारागार अधिकारी ने उससे कहा, “आपको बेवजह इतने कष्ट क्यों भोगने चाहिए? दो महिलाएं यहां जेल की कोठरी में हैं और अगर आप उन्हें मार सकते हैं तो हम आपको जेल से रिहा कर देंगे।” हालाँकि वह शुरू में झिझक रहा था, लेकिन फिर उसने प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और अपने हाथों में बंदूक ले ली।
जब दो बहनों को उसके सामने लाया गया, तो यह जानकर हैरानी हुई कि उन दोनों को पहले उसी पास्टर के द्वारा उद्धार के मार्ग पर चलाया गया था और वे उसके चर्च की सदस्य थीं। उन्होंने पास्टर से कहा, “पास्टर, हो सकता है कि आप अपने कष्टों के बीच इस निर्णय पर आए हों। आपने हमें मसीह से मिलवाया और अब आपने हमें मारने के लिए बंदूक ले ली है। यदि हम मर भी जायें तो भी हम मसीह का इन्कार नहीं करेंगे। हम आपसे अनुरोध करते हैं कि, हमें मारने के बाद ही सही आप मसीह के प्रेम में वापस आ जायें। उन्हें प्रसन्न करें। कृपया नीचे ना गिर जाएं।”
पास्टर ने उन दोनों को बेरहमी से मार डाला। वह चाहता था कि उन महिलाओं को मारकर वह एक स्वतंत्र जीवन जी सके, लेकिन जो हुआ वह एकदम भिन्न था। जैसे ही उसने उन महिलाओं को मार गिराया, अगले ही पल जेल अधिकारियों ने अपनी बंदूकें निकाली और उसे मार गिराया। उसे अपने पापों के लिए पश्चाताप करने का भी मौका नहीं मिला। परमेश्वर के प्यारे बच्चों, इस दुनिया में केवल एक ही जीवन है। इसमें हम परमेश्वर को प्रसन्न करें और उसके लिए प्रिय बनें।
ध्यान करने के लिए: “ यदि हम जीवित हैं, तो प्रभु के लिये जीवित हैं; और यदि मरते हैं, तो प्रभु के लिये मरते हैं; अतः चाहे हम जीएं या मरें, हम प्रभु ही के हैं” (रोमियों 14:8)।