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अगस्त 30 – उसकी उपस्थिति और वचन पर मनन।
“चुप हो जाओ, और जान लो, कि मैं ही परमेश्वर हूं. मैं जातियों में महान हूं, मैं पृथ्वी भर में महान हूं!” (भजन 46:10)
जब हम शांत होकर प्रभु के वचन पर मनन करते हैं, तो परमेश्वर की उपस्थिति हमारे हृदय में प्रवाहित होती है और हमें दिव्य संतुष्टि से भर देती है, मानो स्वर्ग से कोई नदी बह रही हो.
आपने जो पद पढ़े हैं, उन्हें याद करें. उन पर मनन करें, उनके अर्थ की खोज करें, उन पर गहराई से विचार करें. ऐसा करने से, आप न केवल परमेश्वर की उपस्थिति का अनुभव करेंगे, बल्कि कई अन्य आध्यात्मिक आशीषें भी प्राप्त करेंगे.
जब परमेश्वर ने यहोशू को लोगों का नेतृत्व करने और कनान पर विजय प्राप्त करने के लिए नियुक्त किया, तो यहोशू को परमेश्वर की उपस्थिति की आवश्यकता थी. इसलिए प्रभु ने उससे वादा किया: “जैसे मैं मूसा के संग रहा, वैसे ही तेरे संग भी रहूँगा; मैं तुझे कभी न छोड़ूँगा, न त्यागूँगा.” (यहोशू 1:5)
उसने यहोशू से यह भी कहा, “व्यवस्था की यह पुस्तक तेरे चित्त से कभी न उतरने पाए, इसी में दिन रात ध्यान दिए रहना, इसलिये कि जो कुछ उस में लिखा है उसके अनुसार करने की तू चौकसी करे; क्योंकि ऐसा ही करने से तेरे सब काम सफल होंगे, और तू प्रभावशाली होगा.” (यहोशू 1:8)
आप बाइबल पढ़ सकते हैं. आप इसे याद भी कर सकते हैं. लेकिन असली सवाल यह है: क्या आप इस पर ध्यान करते हैं? ध्यान के माध्यम से ही परमेश्वर की शक्ति आपकी आत्मा को मज़बूत करती है. हमें वचन को सिर्फ़ सुनना या याद नहीं करना, बल्कि उसकी शक्ति को अपने भीतर काम करने देना चाहिए.
दाऊद गहन ध्यान में लीन रहने वाले व्यक्ति थे. इसीलिए उन्होंने लिखा, “धन्य है वह मनुष्य जो यहोवा की व्यवस्था से प्रसन्न रहता है, और उसकी व्यवस्था पर दिन-रात ध्यान करता रहता है.” (भजन 1:2). उन्होंने इसे सिर्फ़ लिखा ही नहीं—उन्होंने इसे जीया भी. उन्होंने यह भी कहा, “बिस्तर पर मैं तेरा स्मरण करता हूँ; मैं रात के एक-एक पहर में तेरा ध्यान करता हूँ.” (भजन 63:6)
ध्यान करने का क्या अर्थ है? गाय, भेड़, ऊँट और जिराफ़ जैसे जानवरों का एक अनोखा व्यवहार होता है—चरने के बाद, वे किसी शांत जगह पर जाकर धीरे-धीरे अपना खाया हुआ खाना चबाते हैं. यह जुगाली मसीही ध्यान से एक सटीक तुलना है.
प्रभु के प्रिय लोगो, ध्यान का सार आपके द्वारा पढ़े गए अंश को याद करने, उस पर गहराई से विचार करने, उसमें निहित शिक्षाओं, चेतावनियों और आशीषों को पहचानने और फिर वचन की गहराई का तब तक स्वाद लेने में निहित है जब तक कि वह आपका व्यक्तिगत अनुभव न बन जाए.
मनन के लिए पद: “मेरे मुंह के वचन और मेरे हृदय का ध्यान तेरे सम्मुख ग्रहण योग्य हों, हे यहोवा परमेश्वर, मेरी चट्टान और मेरे उद्धार करने वाले!” (भजन संहिता 19:14)